रोसड़ा के भटोतर गांव स्थित राम सागर राय मुंशी के यहां अद्भुत गणेश जी की मंदिर में हो रहा गणेश चतुर्थी के अवसर पर पूजा अर्चना।
रोसड़ा का अद्भुत गणेश मंदिर
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रोसड़ा ( समस्तीपुर ) के भटोतर निवासी राम सागर राय मुंशी जी के यहाँ एक अद्भुत श्रीगणेश जी का मंदिर है । इस मंदिर की प्रसिद्धि दिनोंदिन बढ़ती जा रही है । यहाँ पर सच्चे मन से पूजा करने पर लोगों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस कारण इसे मनोकामना मंदिर का दर्जा प्राप्त है। इस मंदिर के निर्माण की पृष्ठभूमि की जानकारी भी रोचक है।
भटोतर ( रोसड़ा ) के मुंशी जी राम सागर राय कई व्यापारियों का काम करने के सिलसिले में समस्तीपुर आते-जाते रहते थे। एक दिन मुंशी जी किसी कारण से परेशान और उदास थे। उनको परेशान देखकर अधिवक्ता शिवकुमार अग्रवाल ने एक माला देकर श्रीगणेश जी का मंत्र बताकर प्रतिदिन एक माला जाप करने की प्रेरणा दी। मुंशी जी ने कुछ दिनों तक प्रतिदिन एक माला यानी 108 बार मंत्र का जाप निष्ठापूर्वक किया।उसके बाद उन्होंने प्रतिदिन सात माला का जाप शुरू कर दिया। यह सिलसिला सात साल तक चलता रहा। फिर एक दिन अचानक एक बूढ़ा आदमी मुंशी जी के दरवाजे पर पहुंचे। दरवाजे पर शिक्षक बच्चों को पढ़ा रहे थे।उन्होंने शिक्षक से कहा कि मैं मुंशी जी से मिलने आया हूँ।उनको बुलवा दीजिए। शिक्षक ने एक बच्चे को मुंशी जी को बुला कर लाने के लिए भेजा। मुंशी जी ने कहा कि आ रहा हूँ। मुंशी जी चाय लेकर आए। शिक्षक और मुंशी जी चाय पी रहे थे,लेकिन बूढ़ा आदमी चाय नहीं पी रहे थे। किसी प्रेरणा से या संदेश वाहक के रूप में वे लगातार बोले जा रहे थे कि आपको गणेश जी प्राप्त होंगे। अंत में मुंशी जी ने पुनः आग्रह किया कि चाय पी लीजिये न । मुझे ड्यूटी पर जाना है ।बूढ़ा आदमी चाय पीकर बोलते हुए चलते रहे। चलते चलते ही उन्होंने कहा कि आपको गणेश जी मिलेंगे। कैसे मिलेंगे सुन लीजिए। आपको अकोन का पेड़ चुनना है । जिस पेड़ पर आपका अटूट विश्वास हो। उस पेड़ के पास जाकर पान -सुपारी के साथ निमंत्रण( न्योता)देना है । पेड़ के पास आदरपूर्वक बोलना है कि हम अगले दिन आपको लेने आयेंगे। जाते-जाते बूढ़े ने कहा कि अकोन पेड़ को न्योता पंडित से समय समझकर दीजिएगा। मुंशी जी असमंजस में पड़ गए। उन्होंने चार दिन तक न्योता देने का काम नहीं किया। इसके बाद मुंशी जी ने रोसड़ा के अरुण पंडित जी से सम्पर्क कर सारी बातों की जानकारी दी। विमर्श के बाद अरुण पंडित जी ने समय निर्धारित किया। इस प्रक्रिया को पूरा कर मुंशी जी अगले दिन उस पेड़ को जमीन से ऊपर काटकर जड़ को खोदा। संयोग से या ईश्वर कृपा से गणेश जी पूरे आकार में मिल गए। मुंशी जी की प्रसन्नता की सीमा नहीं रही। वे उल्लसित होकर पुनः अरुण पंडित जी से मिले। तब गणेशजी के विग्रह के प्राण-प्रतिष्ठा का दिन चुना गया। 2 फरवरी 2010 को धूमधाम से प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन किया गया जिसमें विद्वान, श्रद्धालु और धार्म स्थावान लोग सम्मिलित हुए। विचार-विमर्श के बाद मंदिर का नाम – अर्केश्वरनाथ गणेश घोषित किया गया। इस मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक पूजा होती है और श्रीगणेश जी के मंत्र का जाप किया जाता है। गणेश चतुर्दशी को प्रतिवर्ष धूमधाम से वृहद पूजा की जाती है। मंदिर की ख्याति बढ़ती जा रही है :—
प्रस्तुति — पी.सी.ठाकुर